खुदगर्ज़

एस्थर नाग

यहां हर दूसरा अपने ही गुरूर में अँधा है,
खुशियां, तो सबके पास ही मंदा है।

बस एक दूसरे को खींचने-गिराने में लगे हैं,
रुला के, दे ना कोई यहाँ कन्धा है।

जज्बातों की गलियों में यहां कोई ना जाए,
वो राह अब तक, सुनसान और ठंडा है।

सब को यहां अपनी ही पड़ी है,
दूसरों के लिए बनाते तो सब फंदा हैं।

चढ़ के निकल जाते हैं, बड़े आराम से लोग यहां,
इंसानियत की क़त्ल कर के, क्यूंकि,
यहां तो इंसानियत ही इंसानियत से मांग रही चंदा है।

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